Dharm Mamdal Viraha
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Viraha is poetical description of Dharm Mandal history written by our ancestor in 'Awadhi' language. It describes how this movement of cultural organization "Dharm Mandal" started and still continue. Complete "Viraha" is given below.

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महिमा राम की ना जानी सुनो दशमी की कहानी ,

कैसे लीला भया हो  सरनाम !

 

सन (१९३२) मे, कुछ लरीके कीहेन खेलाई हो !

रंग बीरंगा कागज लईके, रावन कीहें बनाई हो !!

बुधवार बाज़ार का दीन था , राही करै पुछाई  हो !

कहां का रावन तू सब बन्वत, सुंदर चाप लगायी हो!! कैसे!! 

 

बक्शा का एक टूटन मिली गय , पीट - पीट गोहराई हो!

गाँव के दस्मी कल हमरे हौ, आवा करै दीखाई हो !!

केउ तो समझे झूठ- मूठ हौ, केउ तो फुर मन लाई हो!

गाँव के एयरे गोयढ़े वाले, सुन-सुन करे हँसाई हो!! कैसे!! 

 

होत भोर बीअफ़े के लरीके, रावन कीहेन गराई हो!

लाल हरी झंडी भी गारेन, बाग़ मे कीहेन सफ़ाई हो!!

चम्कुआ कुछ मुकुट बना के, सीर पर लीहेन लगाई हो!

सोलह गंडे के खर्चे मे, दस्मी दीहें लगाइँ हो!! कैसे!! 

 

छुट पुट दुई चार दुकाने, बाग़ के अंदर आई हो!

पटहारा बरई भी आया, आया एक हलवाई हो!!

नून, तमाखू, सुरती वाला, पंहुचा एक मुराई हो!

लरीके पैसा माँगी लागेन, बाप पे आफत आयी हो!! कैसे!! 

 

टेंट मे पैसा लै के आए, बाप चचा और भाई हो!

देख के लरीकेन के दस्मी, वह मन मे अती हरषाई हो!!

कीये संकल्प राम भरोसे,लेउ अब हाथ बँटाई हो!

लौटी घरे सब मीटीन्ग कईके, चन्दा लीहेन लगाई हो!! कैसे!! 

 

सन १९३३ से फीर अद्भुत रूप दीखाई हो!

सौ सैक्रे मे कया रखा, हज़ार मन ना भाई हो!!

वकील छोटे बने सेकरट्री, उचित सलाह दीख्लाई हो!

डाय्रेट्र बेनी प्रसाद बने, हाव भव सीख्लाई हो!! कैसे!! 

 

गोंवीनद गोदाम के मालीक है, जो सब चीज़ रखाई  हो!

वकील गोपी बने खजांची, जोरे पाई-पाई हो !!

स्टेज बनाये राम पीयारे, करामात दीख्लाई हो!

वकील लालता जौनपुरी,हर साल इनाम ब्टाइँ हो!!

सैनीट्री इंसपेक्टर कमला, करे गैस सप्लाई हो!! कैसे!! 

 

हरीशचंद्र वरमा ने भी, काफी उनन्ती दीख्लाई हो!

एक संघ कायम करके, आपस मे मेल कराई हो!!

कहे परकाश राजा बब्बू से, कैसी धूम मचाई हो!

यह सब रही कृपा भगवन की, जो मन मे बस जाई हो!! कैसे!!